नई दिल्ली। तीस हजारी अदालत ने दहेज उत्पीड़न मामले में सास-ससुर को सभी आरोपों से बरी कर दिया है।
अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 498ए का उद्देश्य महिलाओं को संरक्षण देना है, लेकिन वैवाहिक विवादों में अस्पष्ट आरोपों पर रिश्तेदारों को मुकदमे में घसीटना कानून का दुरुपयोग है। यह न्याय व्यवस्था का बोझ बढ़ाता है और वास्तविक पीड़ितों के मामलों को कमजोर करता है।
फैमिली कोर्ट की न्यायिक मजिस्टेट श्रति शर्मा की अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता की ओर से सास-ससुर पर लगाए गए आरोप न तो किसी विशेष घटना से जुड़े हैं, न किसी तारीख या स्पष्ट भूमिका का उल्लेख किया गया है। ऐसे आरोपों पर ट्रायल चलाने से न्याय प्रणाली पर अनावश्यक बोझ पड़ता है। यह मामला तिलक नगर थाने में दर्ज प्राथमिकी से जुड़ा है। शिकायतकर्ता महिला को शादी फरवरी 2015 में हुई थी। नवंबर 2018 में उसने शिकायत दर्ज कराई गई थी।
